सोशल मीडिया का नाम आते ही फेसबुक, ट्वीटर और व्हाट्सएप जैसे तुरत-फुरत मैसेज पहुंचाने वाले एप्स दिमाग में घूम जाते हैं| कुछ समय में यह एक सशक्त मीडिया के रूप में उभर कर आया है| आज हर इंसान चाहे वह पेपर वाला हो, सब्जी वाला, रिक्शावाला, बच्चे, महिलाएं, नौजवान हर कोई जिसके भी हाथ में एंड्राइड फ़ोन है तो एक तरह से वह स्वंभू सोशल पत्रकार या जागरूक नागरिक की भूमिका निभा रहा है| दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वह हर इंसान मीडिया कर्मी है जिसके पास स्मार्टफोन है तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी| लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन सभी के प्रयोग से कुछ ऐसे नुकसान होते हैं, जो दीमक की तरह हमारी जिंदगी में बर्बादी का कारण बन रहे हैं।
चलिए बताते हैं कि क्या हैं ऐसी वजह जो एक निजी जिंदगी पर असर डालती हैं।
ऐसा नहीं कि पहले एक आम इंसान को अपनी बात कहने का माध्यम नहीं था। पहले मीडिया का मतलब सिर्फ अखबार, रेडियो और टेलीविजन तक ही सीमित था। रेडियो और टेलीविजन सीमित संसाधन थे लेकिन अखबारों में काफी गुंजाइश होने के बावजूद पत्रकार की मर्ज़ी, मीडिया हाउस की पॉलिसी और एडिटर की पाबंदियों के कारण असल में जो एक आम इंसान जो कहना चाहता था वह बात पूरी तरह से लोगों तक पहुंच ही नहीं पाती थी। लेकिन आज जितने फायदे सोशल मीडिया से हैं, उससे कम तो नहीं लेकिन उतने ही नुकसान सोशल मीडिया से आम लोगों को हो रहे हैं।
- समाज पर पड़ रहा है बुरा असर : कहते हैं ना कि अति हर चीज की बुरी होती है चाहे वह कितनी भी अच्छी हो। जी हाँ, यह लोगों की आदत से भी ज्यादा लत बन चुका है, अच्छे प्रभाव कम और दुष्प्रभाव ज्यादा हो रहा है। इससे हमारे समाज पर नकरात्मक प्रभाव भी पड़ते हैं। इसके जरिए कुछ लोग नफरत का जहर फैलाते जा रहे हैं। किसी को कोई परवाह नहीं के यह मैसेज, फोटो, वीडियो सच है जा झूठ?
- नफरत पैदा करती हैं कुछ वीडियो : ज्यादातर लोग यहीं मानते हैं कि इंटरनेट से आने वाली सभी जानकारी सही होती हैं और वे बिना सोचे समझें इसे आगे बढ़ाने का काम करते रहते हैं। इससे एक दूसरे के प्रति धर्म, जातिवाद, पार्टी और समाज के प्रति नफ़रत पैदा हो रही है।
- बच्चों का पढ़ाई से भटकता ध्यान : युथ तो सारा दिन सोशल मीडिया से ही चिपका रहता है, जो समय उसे अपने परिवार और अपने पढ़ाई पर देना चाहिए था वह अमूल्य समय जो उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण है वह सोशल मीडिया पर बर्बाद कर रहा है।
- परिवार में कम होता तालमेल : इस सोशल मीडिया के कारण परिवार के आपसी लोगों का तालमेल खत्म होता जा रहा है| वे अपने परिवार के साथ दो पल बिताने का समय तक नहीं निकाल पाते| वहीं उन्हें सोशल मीडिया पर हुई अनजान दोस्ती ज्यादा भाती है| उनके दिमाग पर असर पड़ता है।
- मानसिक तौर पर कमजोर होते बच्चे : बच्चे शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर होने लगते हैं। पढ़ाई से दूर भागने लगते हैं| कहीं-कहीं इसका प्रभाव इतना अधिक हो जाता है कि वे डिप्रेशन तक में आ जाते हैं। अर्थात मानसिक रोगी हो जाते हैं।
- पति-पत्नी के बिगड़ते संबंध : अक्सर देखा जाता है की ऑफिस से घर आकर पति अपने दोस्तों के साथ चैट करने और वीडियोज़ देखने में मशगूल हो जाते हैं । जो की पति पत्नी के बीच क्लेश का कारण बनता है। इसके कारण आजकल घर टूट रहे हैं रिश्ते बिखर रहे हैं कमजोर हो रहे हैं।
- बुजुर्गों से ध्यान हटना : और तो और माता-पिता दोनों सोशल मीडिया पर इतने मसरुफ हो जाते हैं कि बच्चों को भी पूरा समय नहीं दे पाते| उनका ध्यान नहीं रख पाते| इस तरह से बच्चे भावनात्मक तौर पर खुद को अकेला महसूस करते हैं और जो माता पिता और बच्चों के बीच में एक दृढ़ संबंध होना चाहिए था वह नहीं बन पाता है| नतीजा, बच्चे गलत राह पर भटक जाते हैं या सोशल मीडिया पर वह आसानी से किसी की हमदर्दी के जाल में फंस जाते हैं|
- समाज में फैलता भ्रम : यहां कंटेंट का कोई मालिक न होने से मूल स्रोत का अभाव होता है। प्राइवेसी पूर्णत: भंग हो जाती है। फोटो या वीडियो की एडिटिंग करके भ्रम फैला सकते हैं जिनके द्वारा कभी-कभार दंगे जैसी आशंका भी उत्पन्न हो जाती है। साइबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है। इस तरह से जो सशक्त माध्यम हमारे लिए बहुत ही बेहतरीन और उपयोगी साबित हो रहा था एक अभिशाप बन जाता है।
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