इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली में बने हुए लाल किला, कुतुब मीनार, हुमायूं का मकबरा जैसे कई ऐतिहासिक स्थल दुनिया भर में मशहूर हैं, लेकिन कई ऐसी भी विरासतें दिल्ली में आज भी मौजदू हैं, जिनकी जानकारी खुद दिल्ली वालों को भी नहीं है। इनमें से एक है सिंकदर लोदी द्वारा बनाई गई राजाओं की बावड़ी। क्या है इसका इतिहास, क्या है इसकी खासियत। आइए आपको बताते हैं।
यहां सबसे पहले बसाई गई थी दिल्ली
क्या आप जानते हैं कि जिसे पुरानी दिल्ली कहा जाता है, उससे पहले तुगलकाबाद, लाडो सराय और महरौली जैसे इलाके सबसे पहले बसाए गए थे। यह इतिहास में भी दर्ज है। महरौली में मुगल काल और उससे भी पहले का इतिहास दफ्न है। दिल्ली में महरौली बेस्ट और सबसे अधिक आकर्षित टूरिस्ट लोकेशन कहलाता है। यहां वैसे तो टूरिस्ट सबसे अधिक कुतुब मीनार को देखने आते है लेकिन यहां पर आसपास इतिहास का अटूट खजाना दबा पड़ा है।
राजाओं की बावड़ी- एक अनदेखी विरासत
हम अक्सर महरौली तो जाते ही रहते हैं लेकिन पिछले दिनों महरौली जाने का मौका मिला, तो इतिहास के ऐसे पन्ने की भी जानकारी मिली जहां पर्यटक शायद ही पहुंच पाते हों। तो सोचा क्यूं न आपको बताया जाए कि यह स्थल कहां है और क्या है इसका इतिहास।
1516 में बनाई गई थी राजाओं की बावड़ी
वैसै तो बताने के लिए महरौली में काफी कुछ है लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं ‘राजाओं की बावड़ी,’ के बारे में। राजाओं की बावड़ी को 1516 में सिकंदर लोदी के शासन में दौलत खान ने बनवाया था। राजाओं की बावड़ी शब्द का मतलब यह बिल्कुल नहीं है यह राजाओं के लिए बनवाई गई थी। बल्कि यह बावड़ी उस वक्त बावड़ी के आस-पास काम करने वालों के लिए बनाई गई थी। राजाओं की बावड़ी के करीब ही एक मस्जिद भी है। सिकंदर लोदी ने मस्जिद में काम करने वालों और अन्य कुछ के लिए इस बावड़ी में आने जाने और यहां पर काम करना देखभाल करना तय कर रखा था।
क्या है इस बावड़ी की खासियत
सिकंदर के काल में यमुना नदी से काफी दूर बसाए गए शहर महरौली में पानी की कमी न हो इसके लिए पानी की बावड़ियां बनाई गई थी जो उस वक्त की दिल्ली शहर के नुमाइंदों को पानी की कमी नहीं होने देती थी। यहां दिल्ली के सबसे पुराने मॉन्यूमेंट करीब आसपास ही हैं। महरौली इलाके में वैसे तो पानी के कई स्त्रोत हैं जिनका इतिहास में भी जिक्र है। हालांकि अब इनमें से कुछ एक को छोड़ कर सभी इतिहास का हिस्सा बन गए हैं। कहा जाता है कि इलाके को पानी का पूर्ति करने वाली दो सबसे अहम बाड़ियां हुआ करती थीं, गंधक की बावड़ी और राजाओं की बावड़ी।
तीन मंजिला है राजाओं की बावड़ी
बावड़ी तीन मंजिला नीचे तक है और एक अतिरिक्त तल ग्राउंड लेवल पर बनाया गया है। अन्य बावड़ियों की तरह बावड़ी के पीछे की तरफ एक कुंआ भी है और आगे की तरफ कुंड (पूल)। बावड़ी परिसर तीन तरफ से कमरों नुमा स्ट्रक्चर से घिरा है। ताकि धूप आदि से बचा जा सके और यहां की ठंडक में कुछ समय आराम किया जा सके। दिल्ली की अन्य बावड़ियों की तुलना में 16 सदी की राजाओं की यह बावड़ी काफी बड़ी मानी जाती है। बावड़ी की छत पर चढ़ कर दूर तक का नजारा काफी मनमोहक और हराभरा खुला खुला दिखाई देता है। यहां आकर लगता ही नहीं कि हम दिल्ली में कंक्रीट के जंगल में हैं। दूर तक फैली हरियाली गर्मी का अहसास नहीं होने देती उस पर बावड़ी का पानी इलाके में ठंडक का प्रवाह करती है। कुतुब मीनार का नजारा भी यहां से लिया जा सकता है।
कैसे पहुंचे
यह महरौली के उन जंगलों में बनी हुई है, जहां पैदल या टू-व्हीलर से ही जाया जा सकता है। पुरातत्व विभाग ने बावड़ी का रख-रखाव काफी हद तक किया हुआ है, लेकिन पर्यटकों के लिए यहां कोई सहूलियत नहीं है। यहां पहुंचने के लिए आपको महरौली मेट्रो स्टेशन से आ सकते हैं या फिर अपने व्हीकल से कुतुब मीनार पहुंचकर पैदल यहां तक आ सकते हैं। लेकिन आपको बता दें कि यहां पहुंचने के लिए आपको थोड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी।
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